रुकना नहीं राधिका रमेश चंद्र का दूसराकथा-संग्रह है। पहले संग्रह 'भिखनापहाड़ी ' की सफलता काबिले-गौर है। श्री चंद्रसमाज में व्याप्त व्यापक मुदूदों की छोटी-छोटीबातों को कहानी के शिल्प में सफलतापूर्वकढालते हैं । एक स्वर इनकी कथाओं में सिंफनी-सा तारी है, वह है मानवीय संवेदना। सभीकहानियों में घनीभूत संवेदना के बीच मैं कुछकहानियों का जिक्र करूँगी। 'लिफ्ट वालीलड़की ' में सफाई कर्मचारी के प्रति भय, जुगुप्सासे भरी हुई लड़की जब वस्तुस्थिति जानती है, तबबिल्कुल बदल जाती है। शीर्षक कथा 'रुकनानहीं राधिका' सारी मेहनतकश आत्माभिमानीलड़कियों के लिए उद्बोधन व आवाहन है।फिल्म इंडस्ट्री की हकीकत का बयाँ करतीकहानी 'वह कौन थी... ?' जब पराकाष्ठा परपहुँचती है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं । ' सियाबरसिपाही मानवता की मिसाल बन जाता है।“हिंदुस्तान बैंड' चवननी पर चार गीत गाने वालेचुनुवा की कहानी है ।' यार था वह मेरा ' कर्ज औरमर्ज से परेशान बूटन की मर्मस्पर्शी कहानी है । ' येदिन भी बदलेंगे ', ' शगुन के सौ रुपए ' और ' समयपाय तरुवर फले ' में सचमुच दिन बदल जाते हैं ।*राज-रतन' मुहब्बत की पाक दास्तान बन जातीहै। 'हाल-ए-हलीम', 'ए फॉर एप्पल' और'पा...पा...पापा ' में लेखक ने बाल मनोविज्ञान काबड़ा मनोहारी आरेखन किया है। 'रेशमा कीराखी' एक बावली बहन की हदयस्पर्शी कहानीहै, जिसका भाई सीमा पर शहीद हो जाता है। श्रीचंद्र ऐसे ही लिखते रहें, यही कामना करती हूँ।